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सोने की शुद्धता यानी टंच निकालने वाले काट रहे है चांदी* *।

सूत्रों के अनुसार सोने की शुद्धता मापने वाली सोने की टंच निकालने वाले लंबे समय से न सिर्फ सुनार व ग्राहकों की जेब पर डाला डाल रहे हैं साथ ही खुद अनाप शनाप कमाई कर जमकर चांदी काट रहे है।सोने की टंच निकालने वालों ने रेट बढ़ने से अब फीस लेनी लगभग बंद कर दी है लेकिन टंच निकालने के नाम पर दस से बीस मिली ग्राम सोना ले लेते है इसके बाद ग्राहक उनके तामझाम उपकरण देखकर उन पर सहज विश्वास कर लेता हैं।लेकिन ग्राहक को नहीं मालूम कि उनके टंच फार्म पर मगरमच्छ जैसे सुनार सराफ गिद्ध नजर गड़ाए रहते है।जेवर गलने के बाद ग्राहक को मिले सोने की डुंगरिया पर दुकानदार अपने मन पसंद टंच निकालने वालों के यहां ग्राहक को भेज देते है और यही से ग्राहक की जेब कटनी शुरू हो जाती है। कुछ इस तरह समझिए पूरे खेल को जिसमें होता यह है कि सोने की शुद्धता यदि टंच निकालने वाला अस्सी फीसदी शुद्ध सोने का फॉर्म सत्तर से पचहत्तर फीसदी ही फॉर्म पर चढ़ाता है।जबकि ओरिजनल अपने पास रख लेता है।ग्राहक को भनक भी नहीं लगती कि उसकी जेब कैसे कट रही है।पहले वाला शुद्धता फॉर्म ओर सोना लेकर जिस दुकानदार ने भेजा।टंच वाले अपनी ड्यूटी की तरह ग्राहक को उसी दुकानदार के हवाले कर देता है जो फॉर्म के अनुसार लेनदेन का हिसाब कर देता है। जबकि असली फॉर्म टंच वाले के पास होता है जिसे वह ग्राहक के जाते ही संबंधित दुकानदार को थमा देता है। उसके बदले उसे एक मुश्त रकम दुकानदार दे देता है।इस पूरे खेल में एक नहीं कई टंच निकालने वाले लगे है सारे दिन में एक ग्राहक से दुकानदार ओर टंच निकालने वाले जमकर चांदी काटते हुए अंधाधुंध कमाई कर रहे है।यदि GST और इनकम टैक्स, व्यापार टैक्स अधिकारी अचानक छापा मारे तो सही ओर गलत सब सामने आ सकता है ऐसा सूत्र बताते है।कमाई का कोई मापदंड नही है।जिनके पास कल तक निवालों के लाले पड़े थे आज वह लग्जरी कारों में घूम रहे है।जो बाहर से खाली हाथ आए थे उनके खुद के आलीशान घर, अनाप शनाप खर्चे,शानदार शोरूम खुद बताते हैं कि दाल में काला नहीं है बल्कि पूरी दाल ही काली है।हकीकत जांच में सामने आ सकती है ----?*
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