झांसी के गुरसराय क्षेत्र में विद्युत कनेक्शन के नाम पर किसानों से हुई करोड़ों रुपए की ठगी का मामला लगातार चर्चाओं में हैं. अब तक विभाग द्वारा क्षेत्र के 22 किसानों के खेतों से ट्रांसफार्मर बरामद किए हैं। जिनके पास से ना तो कोई बिजली विभाग का दस्तावेज प्राप्त हुआ और ना ही कोई रसीद। कहा जा रहा है कि इस ठगी के शिकार और भी तमाम किसान हैं इनकी संख्या 100 के पार भी हो सकती है। अब इस पूरे मामले की जांच के लिए मुख्य अभियंता ने एक टीम गठित की है और जल्द ही इस पूरे प्रकरण के खुलासे की बात कही जा रही है लेकिन सवाल यह है कि जिस जांच टीम में एसडीओ चंद्रेश कुमार को शामिल किया गया है वह भी कहीं ना कहीं जांच के घेरे में हैं। ऐसे में इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच होने पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
आपको बता दें कि बीते माह 5 अप्रैल से विद्युत विभाग ने गुरसराय, टोड़ी फतेहपुर और गरौठा क्षेत्र के दर्जनों किसानों के यहां से अवैध रूप से डाली गई बिजली की लाइन और ट्रांसफार्मर बरामद किए गए हैं। जिसके बाद करीब 22 किसानों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है। कहा जा रहा है कि अभी और भी किसान हैं, जो बिजली विभाग के इस धरपकड़ अभियान की जद में नहीं आ पाए हैं। ऐसे में ट्रांसफार्मर और लाइन डालकर अवैध रूप से बिजली का उपयोग कर रहे किसानों की संख्या 100 से भी अधिक हो सकती है। साथ ही कनेक्शन दिला कर ट्रांसफार्मर रखवाने और लाइन डलवाने के नाम पर किसानों से लाखों रुपए की ठगी की गई है। किसी से लाख तो किसी से 2 लाख रुपए की ठगी हुई है। यदि इस ठगी के शिकार सभी किसानों की राशि जोड़कर देखें तो है घोटाला करोड़ों पर पहुंचता है, लेकिन तमाम मीडिया रिपोर्ट्स में यह कहा जा रहा है कि इस पूरे खेल को बिजली विभाग से इतर चंद्र लोगों ने अंजाम दिया है, लेकिन क्या वाकई बिजली विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों की मिलीभगत के बगैर ऐसा संभव है?
*विभागीय अधिकारियों की मिली भगत से किसानों के साथ करोड़ों की ठगी*
इस पूरे प्रकरण में ऐसे तमाम सवाल हैं जो कहीं ना कहीं बिजली विभाग के अधिकारियों को भी संदेह के घेरे में खड़ा करते हैं। और कहीं ना कहीं यदि निष्पक्ष जांच होती है तो जांच की आंच से तत्कालीन से लेकर वर्तमान मैं तैनात अधिकारी भी इसमें झुलसने से नहीं बचेंगे। लेकिन जिन अधिकारियों पर जांच की आंच आने का संदेह है, उन्हें इस जांच टीम में शामिल कर लिया गया है। आखिर जांच टीम में शामिल अधिकारी खुद की जांच कैसे करेंगे? और कैसे पूरा सच सबके सामने आएगा और कैसे उन किसानों के साथ न्याय होगा जिन्होंने अपनी मेहनत की कमाई की 1-1 पाई जोड़ कर दलालों के माध्यम से विभागीय अफसरों तक पहुंचाएं हैं।
*सवाल नम्बर 1*
विभागीय अफसरों का नाम बार-बार इसीलिए दिया जा रहा है क्योंकि बीते एक माह में जो ट्रांसफार्मर विभाग ने बरामद किए हैं और मैं कुछ ट्रांसफर ऐसे भी हैं जो सरकारी हैं और पावर हाउस से ही बदले गए हैं। यदि यह सब अवैध कनेक्शन धारी थे और इनके पास कोई रसीद नहीं थी तो पावर हाउस से वह ट्रांसफार्मर कैसे बदले गए जिनका कोई लेखा-जोखा ही नहीं है? कहा जा रहा है कि यह ट्रांसफार्मर हाल ही में तैनात एसडीओ गुरसराय चंद्रेश तोमर के कार्यकाल में ही बदले गए, जबकि चंद्रेश तोमर स्वयं इस जांच टीम में मौजूद हैं ? अब खुद पर लगे आरोपों की जांच क्या खुद गुरसराय एसडीओ चंद्रेश सिंह तोमर करेंगे ? *सवाल नंबर दो* जिन किसानों के खेत तक जो लाइन पहुंचाई गई है उसके लिए तार और खंभे कहां से आए?
*सवाल नंबर 3*
कहा जा रहा है कि एसडीओ चंद्रेश सिंह तोमर ने चार्ज लेने के बाद उन किसानों की बिजली सप्लाई बंद की थी, जिनके यहां से अवैध कनेक्शन के बाद यह ट्रांसफार्मर बरामद किए गए हैं। आखिर क्या कारण था की सप्लाई बंद करने के बाद फिर से सुचारू की गई और अब 4 से 5 माह बाद इस धरपकड़ अभियान को चालू किया गया। जब पहले से पता था कि यह कनेक्शन अवैध है, तब क्यों नहीं कार्यवाही अमल में लाई गई?
*चार्ज लेने के बाद ही शुरू हो गई थी सेटिंग गेटिंग*
इन तमाम सवालों के बाद अब यह कहा जा रहा है कि चार्ज लेने के बाद ही सेटिंग-गैटिंग का काम शुरू हो गया था। बिजली सप्लाई रोकने के बाद 6 दिसंबर झांसी के यात्रिक होटल के बाहर एक डील हुई थी। जिसमें एसडीओ चंद्रेश सिंह तोमर पर ₹400000 लिए जाने का आरोप है। ₹400000 भी इस शर्त पर लिए गए थे, कि जिन किसानों की सप्लाई काटी गई है उनको फिर से जोड़ दिया जाएगा। हुआ भी ठीक ऐसा ही, सप्लाई जोड़ दी गई और एक माह का समय भी दिया गया कि 1 माह में किसानों को पक्के कागज मिल जाएंगे ताकि उनकी बिजली अवैध से वैध हो जाए।
क्योंकि जिस समय किसानों की बिजली सप्लाई बंद की गई थी उस समय किसानों को रबी की फसल की बुवाई करनी थी। एक माह बाद भी किसानों को कोई कागज नहीं दिया गया जबकि अधिकारियों की तरफ से कहा गया था कि किसानों को उनके कागज दे दिए जाएंगे ताकि उनका कनेक्शन वैध हो। लेकिन एक माह बाद दलालों के जरिए विभागीय अफसर ने फिर से किसानों से वसूली अभियान शुरू कर दिया एक बार फिर किसानों से 20 ₹20000 इकट्ठा करके अधिकारियों को सौंपने की बात कही गई आरोप यह भी है की किसानों से इकट्ठा हुआ पैसा ऊपर भी पहुंचाना पड़ेगा तब यह मैनेज होगा। लेकिन ना तो दोबारा किसान पैसा देने को तैयार हुए और ना ही दलाल पावर हाउस में बैठे विवाह किए अफसर को पैसा पहुंचा पाया क्योंकि किसान तू पहले ही लाखों रुपए दलालों के माध्यम से विभागीय अफसरों तक पहुंचा चुके थे ऐसे में बार-बार किसान इतना पैसा कहां कर से लाकर देंगे?
सारा रास्ता यही फैल गया और खुन्नस खाए अधिकारी ने धरपकड़ अभियान शुरू कर दिया और सारा का सारा दारोमदार चंद लोगों पर ही डाल दिया जबकि इस पूरे प्रकरण में मुख्य भूमिका विभागीय अफसरों की ही है क्योंकि उनके ही इशारों पर किसानों के खेतों तक विद्युत लाइन और ट्रांसफार्मर पहुंचाए गए दलाल तो बस एक माध्यम थे, ताकि सीधे किसान और अफसर के हाथों हाथ पैसों का आदान-प्रदान ना हो।
अब देखना यह है कि इस पूरी जांच मैं क्या कुछ सामने निकल कर आता है? हालांकि इसकी निष्पक्ष जांच संभव नहीं दिख रही है. क्योंकि जिस अधिकारी को इस जांच टीम में शामिल किया गया है. उस पर पहले से ही पैसे डकार लिए जाने के गंभीर आरोप है?
*एक माह पहले ही रिश्वतखोरी की लिस्ट आई थी सामने*
जिन एसडीओ साहब ने इस पूरे प्रकरण का खुलासा किया है, और इस प्रकरण को दबाने के एवज में इन्हीं पर ₹400000 लिए जाने का आरोप है उन्हीं को इस पूरे प्रकरण की जांच टीम में शामिल किया गया है। जबकि इन साहब पर पहले से ही रिश्वतखोरी के मामले में कई गंभीर आरोप हैं। जिनकी एक 2 सदस्य टीम जांच भी कर रही है। आखिर विभाग ने कैसे उस अधिकारी को जांच टीम में शामिल कर लिया जिसके ऊपर पहले से ही जांच चल रही है?
आपको बता दें कि बीते 4 और 5 अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा की जिला अध्यक्ष ने नेहिल सिंघई और केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप वर्मा के प्रतिनिधि जिनेंद्र जैन नए जिलाधिकारी को एक ज्ञापन भेजा था, जिसमें गुरसराय पावर हाउस में एसडीओ के संरक्षण में खुल्लम खुल्ला रिश्वतखोरी के आरोप लगाए गए थे। इसमें बाकायदा जिन लोगों से जितने रुपए लिए गए थे उसकी सूची भी शामिल की गई थी। किसी से ₹400000 वसूले गए थे तो किसी से 20000 किसी से 10000 तो किसी से ₹15000 इसमें लिखे गए थे। इस पूरे मामले की जांच 2 सदस्य टीम पहले से ही कर रही है।
*विधायक का भी फोन नहीं उठाते SDO साहब*
उक्त एसडीओ साहब के कारनामों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है जिला अध्यक्ष और सांसद प्रतिनिधि तो पहले ही शिकायत कर चुके थे कि इनके संरक्षण में पूरे कुरुक्षेत्र में रिश्वतखोरी चल रही है इसके पहले क्षेत्रीय विधायक जवाहर लाल राजपूत भी कह चुके हैं कि एसडीओ साहब उनका फोन ही नहीं उठाते बिजली से संबंधित उनके पास शिकायतें आती हैं तो वह एसडीओ गुरसराय से संपर्क करना चाहते हैं लेकिन उनका फोन कभी रिसीव ही नहीं होता
*मंत्री जी कर चुके हैं निलंबित*
जिन एसडीओ साहब की हम चर्चा कर रहे हैं. वह जिला अध्यक्ष और सांसद प्रतिनिधियों और विधायकों को ही नहीं बल्कि अपने विभाग के मंत्रियों की भी हिट लिस्ट में रहे हैं। क्योंकि 3 साल पहले ऊर्जा मंत्री और वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्रीकांत शर्मा पहले ही एक मामले में एसडीओ चंद्रेश सिंह तोमर को निलंबित कर चुके थे। लेकिन एक बार फिर जब इन्हें तैनाती मिली तो यह फिर से जांच की आंच में फंसते नजर आ रहे हैं?